98 साल पहले शुरू हुई हिस्सेदारी की लड़ाई जारी है। 20 मार्च 1927 को बाबासाहेब अंबेडकर ने महाड़ सत्याग्रह के ज़रिए जातिगत भेदभाव को सीधी चुनौती दी थी। यह केवल पानी के अधिकार की नहीं, बल्कि बराबरी और सम्मान की लड़ाई थी।
जाने-माने शिक्षाविद, अर्थशास्त्री, दलित विषयों के जानकार और तेलंगाना में जातिगत सर्वेक्षण पर बनी अध्ययन समिति के सदस्य प्रो. थोराट से इस सत्याग्रह के महत्व पर चर्चा की। इस दौरान दलितों की शासन, शिक्षा, नौकरशाही और संसाधनों तक पहुंच के लिए अब भी जारी संघर्ष पर भी हमने विस्तार से बातचीत की।
जातिगत जनगणना इसी असमानता की सच्चाई को सामने लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जबकि इसके विरोधी इस सच्चाई को बाहर आने देना नहीं चाहते हैं।
बाबासाहेब का सपना आज भी अधूरा है। उनकी लड़ाई सिर्फ अतीत की नहीं, आज की भी लड़ाई है — हम इसे पूरी ताक़त से लड़ेंगे।